क्या हैं इगास बग्वाल (दीपावली) का महत्व? उत्तराखंड में क्यों मनाते हैं इगास बग्वाल।

नवीन चन्दोला- थराली/ चमोली

इगास बग्वाल (बूढ़ी दीपावली) उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण लोक-संस्कृति का पर्व है, जिसका महत्व वीरता, विजय, सामाजिक एकता और पौराणिक मान्यताओं में है, यह त्योहार दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है और उत्तराखंड के रैवासी के द्वारा पारंपरिक रूप से वीरतापूर्ण जीत का जश्न मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खबर देर से मिलने पर उत्तराखंड में यह दीपावली मनाई जाती है, वीरता और विजय का प्रतीक यह त्योहार वीर गढ़वाली योद्धा माधो सिंह भंडारी की तिब्बत के खिलाफ युद्ध में विजय का प्रतीक है, जब उनके सैनिक युद्ध के बाद 11 दिन देरी से घर लौटे थे, और लोगों ने विजय का उत्सव मनाया था।

इगास बग्वाल उत्तराखंड की लोक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है, जिसमें पारंपरिक वाद्य यंत्र, लोकगीत और नृत्य भी शामिल हैं, पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के 11 दिन बाद पहुंची थी, जिसके कारण स्थानीय लोगों ने अपनी दीपावली बाद में मनाई थी।

यह पर्व परिवार और समुदाय को एक साथ लाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो काम के लिए गाँव से बाहर रहते हैं और इस पर्व पर प्रवासी लोगों का घर लौटकर अपने परिजनों व रिश्तेदारों से मिलन होता हैं, इगास बग्वाल कार्तिक मास की एकादशी को मनाई जाती है, जो भगवान विष्णु के जागने और विवाह, गृह प्रवेश और नए कार्यों की शुरुआत के लिए एक शुभ समय माना जाता है।

इस दिन दीये जलाए जाते हैं, पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे ढोल और दमाऊं की धुन पर लोग नृत्य करते हैं और लोग भैलो (जलता हुआ मशाल) खेलकर अंधकार पर प्रकाश, विजय और समृद्धि का जश्न मनाते हैं।